"तिरंगा"
बड़े नाज़ से उसे
सीने से लगा के हम
इतराते फिरते हैं दो दिन
फिर तमाम साल हम
हमारी ज़िन्दगी से उसका
अस्तित्व हटा देते हैं
भारत के टुकड़े तो कर ही चुके हैं हम
उसको भी हिस्सों में बाँट दिया है
केसरी इसका और
हरा उसका
सफेद का तो कोई वजूद ही नही
और चक्र का जैसे घूमना ही बंद हो गया
सोच रही हूँ
जिन्होंने उसके लिए अपनी
जान गँवाई
वो सब क्या सोचते होंगे
इस शिकस्ता तिरंगे को
देखकर
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