ज़िंदगी ये मुझे किस मोड़ पे ले आई है
भीड़ की भीड़ है तन्हाई की तन्हाई है
ओशियन में भी नहीं होगी मैं सच कहता हूँ
तेरी आँखों में मेरे यार जो गहराई है
आज अन्दाज़ हवा का भी जुदा लगता है
क्या तेरी जुुल्फ़ से टकरा के यहाँ आई है
इतनी जल्दी ये दिलों से नहीं हटने वाली
दिल पे नफ़रत की ये जो बैठी हुई काई है
आदमी भूख से अब ख़ुद को बचाए कैसे
जान ले लेवे जो वो मुल्क में मंहगाई है
जीते जी यार ये मुमकिन ही नहीं है भरना
हम ने वो चोट मुहब्बत में यहाँ खाई है
इसमें घर आपका भी देखना जल जाएगा
आग नफ़रत की जो ये आपने दहकाई है
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