लेकर के मोहब्बत में मिरा नाम सर-ए-आम
अब तुम भी मचाने लगे कोहराम सर-ए-आम
मैंने तो सुनाया था भला हाल नज़र से
पर वो तो लगाने लगे इल्ज़ाम सर-ए-आम
है उम्र किताबों की सुनो प्रेम पुजारी
बेचोगे पढ़ोगे नहीं तो आम सर-ए-आम
डरते हैं किसी से न वो दबते हैं किसी से
देते हैं मोहब्बत का भी पैग़ाम सर-ए-आम
मैं थक सा गया दर्द ज़माने के उठाकर
हो जाए यहीं ज़िंदगी की शाम सर-ए-आम
मैं तो कभी भी घर से निकलता भी नहीं हूँ
और तुमने मुझे कर दिया बदनाम सर-ए-आम
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