जिसके घर भी गए नफ़रत को मिटा कर आए
हम मोहब्बत का चलन सबको सिखा कर आए
रोटियाँ अपनी कई बार छिनी हैं लेकिन
जब भी घर आए तो मुस्कान सजाकर आए
मक़्तल-ए-जाँ में परिंदे गँवा बैठे सब कुछ
बड़ी मुश्किल से मिरी जान बचाकर आए
क्या करें कोई मिला ही नहीं लेने वाला
हर दफ़ा जान हथेली पे सजा कर आए
मौत को भी नहीं मालूम कि मैं ज़िंदा हूँ
मेरे क़ातिल तो मिरी ताक लगा कर आए
जिसने हर बार चलाया मिरे ऊपर ख़ंजर
हर जगह हम तो उसे जान बता कर आए
दुश्मन-ए-जाँ वही निकलेगा ख़बर थोड़ी थी
हम तो दिल का उसे मेहमान बनाकर आए
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