ढलने लगी ये शाम अब मेरी यहाँ
हैं कोशिशें नाकाम सब मेरी यहाँ
इस आस से ज़िन्दा रहा मैं उम्र भर
सुन ले ख़ुदा फ़रयाद अब मेरी यहाँ
कुछ ख़ास है इस में मुझे दो और ग़म
बस है उदासी ही तलब मेरी यहाँ
मैंने मुहब्बत की मियाँ, ये फिर बनी
इस कामियाबी का सबब मेरी यहाँ
कुछ इस लिए भी बोलता ज़्यादा नहीं
बेकार समझे बात सब मेरी यहाँ
तुम भी समझ बैठे मुझे ख़ुश यार अब
है ज़िन्दगी ख़ुश-हाल कब मेरी यहाँ
'आरिज़' बनूँगा याद मैं इक दिन कभी
परवाज़ होगी रूह जब मेरी यहाँ
Read Full