मानता हूँ मैं कि ये इज़हार उसका था नहीं
पर नहीं कहना कि मैं हक़दार उसका था नहीं
इक सदी का साथ तो था उसके मेरे दरमियाँ
फिर उसे ये क्यूँ लगा मैं प्यार उसका था नहीं
तोड़ने को ये खिलौना ही मिला था क्या उसे
क्यूँ किया उसने ये दिल व्यापार उसका था नहीं
मैं भला कैसे समझ पाता किसी की चाल को
यार आँखों में कभी इन्कार उसका था नहीं
सौ दिलासों का मैं आख़िर क्या करूँगा ये कहो
जानता हूंँ मैं अभी मैं प्यार उसका था नहीं
भारती ये ज़िंदगी हर दिन नई होगी यहाँ
जो नहीं है पास तू हक़दार उसका था नहीं
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