इस तरह शायरी का असर हो गया
खुशनुमा ज़िंदगी का सफ़र हो गया
मिल गई चाँद की रौशनी जब उसे
इक नया पौधा पूरा शजर हो गया
यार संगीत इतना सरल भी नहीं
तान इक सीखते रात भर हो गया
बाद सर्दी यहाँ फिर ज़ियादा लगी
मेरा कंबल इधर से उधर हो गया
चाय मीठी बनी और अच्छी बनी
देखते सीखते यह हुनर हो गया
मैं उसे फिर कभी चूम लूँगा कहीं
पास वो पहले जैसे अगर हो गया
दिल नहीं लग रहा है किसी से 'शुभम'
कैसा था कैसा तेरा जिगर हो गया
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