फिर शुरू तर्क-ए-त'अल्लुक़ की कहानी मत करो
बात ये है बात अब कुछ भी पुरानी मत करो
मैंने तुमको कह दिया तुमसे मुहब्बत है तो है
बात मेरी मानो इतनी बद-गुमानी मत करो
ठीक है यूँ देखते रहना मुझे लेकिन सुनो
चाय टेबल पर रखी है इसको पानी मत करो
मैं तो माँ को उसके बारे में बता भी देता पर
वो ही कहती अपनी मनमानी तो जानी मत करो
इसकी ख़ुशबू में तो उसके होने का एहसास है
मेरे आँगन से जुदा ये रात-रानी मत करो
माना सब कुछ ठीक जायज़ है मुहब्बत में मगर
जो न कॉलर में छिपे ऐसी निशानी मत करो
मैंने करके देखा तब ये कहता हूँ यारों सुनो
इश्क़ कर लो इश्क़ में पर लन-तरानी मत करो
इन बुज़ुर्गों को ज़ियादा तजरबा भी रहता है
ये मना कर दें जो करने को तो यानी मत करो
कौन जाने कौन कब कैसे मुकर जाए यहाँ
कोई भी सौदा किसी से मुँह-ज़बानी मत करो
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