फ़क़त माफ़ी से ही दिल से गिले शिकवे नहीं जाते
सहर आ जाती है पर रात के धब्बे नहीं जाते
बरसती हैं कभी आँखें कभी जलने ये लगती हैं
ये सूखे फूल हमसे इस तरह देखे नहीं जाते
वफ़ा की बात है ख़ुद से तो शीशा देख लेते हैं
वगरना हम से ऐसे लोग भी देखे नहीं जाते
फ़क़त चिट्ठी ही काफ़ी तो नहीं इज़हार करने को
जो दिल में हैं वो काग़ज़ क्या कहीं लिक्खे नहीं जाते
किसी की दुनिया से वापस मैं ख़ाली हाथ आई हूँ
ख़ुदा भी चीख़ता होगा नहीं ऐसे नहीं जाते
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