जो भी मैं कहता हूँ वो लोगों को झूठा लगता है
है ये उलझन अब मुझे क्यूँ उनको ऐसा लगता है
मुझको वो काफ़ी परेशानी में रखता है मगर
जाने क्यूँ वो शख़्स मुझको फिर भी अच्छा लगता है
क्या कहा वो तुमसे मेरी भी बुराई कर गया
जो मेरे ख़्वाबों में आकर मुझको अपना लगता है
मैं तो अपनी ज़िंदगी में इतना हारा हूँ कि अब
दर्द भी मिलता है तो अब वो भी प्यारा लगता है
कौन आए कौन जाए कौन अब दिल में रहे
ये ख़याल अब तो मुझे काफ़ी पुराना लगता है
प्यार में हूँ या यूँ लगता है कि मैं बर्बाद हूँ
एक पल में जीना मरना जाने क्या क्या लगता है
जिसकी यादों में कहीं भी मेरा हिस्सा है नहीं
उसको पाना भी मुझे तो एक सपना लगता है
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