तू छोड़ के जाने के बहाने के लिए आ
ये सिलसिला अब तोड़ कि आने के लिए आ
बिन जिसके रही रात की ताबीर अधूरी
तू अपने उसी ख़्वाब-ख़ज़ाने के लिए आ
हर आँख लहू और जिगर ख़ौफ़ हो शामिल
ऐसा भी सितम कोई तू ढाने के लिए आ
तेरे ये सितम मुझको सताते ही नहीं अब
तू मौत ही से मुझको डराने के लिए आ
सब हार गया था मैं तुझे और मुझे तू
ये राज़ ज़माने से छुपाने के लिए आ
नादान कभी जान न पाया तेरे दिल की
'माही' को तू समझा के बुझाने के लिए आ
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