घर में अब दीवार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
लोगों पर दीनार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
रिश्ते नातों से भूख प्यास तक सबके सौदे हैं
यूँ शहर में बाज़ार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
कितनी यादें कितनी बातें कितना कुछ कहना है
शाइर पे अशआर बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
इतनी छोटी दुनिया में सब आस पास ही रहते हैं
मिलने के आसार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
बड़ी अजब सी हालत है कैसे किसको समझाएँ
महफ़िल में किरदार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
कितने नए पुराने क़िस्से भी हैं सरगोशी को फिर
पढ़ने को अख़बार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
अब थोड़े से पल भी हैं फ़ुर्सत के और इधर तो
महीने में इतवार बहुत हैं फिर भी तन्हाई है
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