तू नए किसी दर क्यों नहीं जाता
तेरा ख़्वाब बिखर क्यों नहीं जाता
इतना प्यार में शर्मिंदा हुआ है
अब तू शर्म से मर क्यों नहीं जाता
उसकी याद में क्यों ऐसे रहूँ मैं
ज़ख़्म उसका ये भर क्यों नहीं जाता
बार बार वो इक ही गली जाना
तू अभी भी सुधर क्यों नहीं जाता
कैसे उसकी किसी याद से निकलूँ
उसका मुझ से असर क्यों नहीं जाता
कैसी इक बुरी नागिन थी वो हाए
ज़हर उसका उतर क्यों नहीं जाता
ईद को अभी यासिर है समय कुछ
छत से चाँद मगर क्यों नहीं जाता
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