है सब के बख़्त में लिखी तहरीर मौत की
किस को ख़बर कि कब दिखे तस्वीर मौत की
कल ख़्वाब आया था मुझे मेरी वफ़ात का
है उम्र बढ़ना तो नहीं ताबीर मौत की
कल तक जो मुझ पे हँसते थे वो रो रहे हैं अब
मर जाने पर पता चली तासीर मौत की
मिट कर ख़ुदी मिटाया है उसने ग़मों को पर
क्या इतने ग़म थे जो चुनी तदबीर मौत की
अब डर रहा हूँ रोज़ गुनाहों को गिनते मैं
कल रोज़ सुन रहा था मैं तफ़्सीर मौत की
खुल कर अभी जियो कि तुम आज़ाद हो अभी
इक दिन तो बाँध देगी ये ज़ंजीर मौत की
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