जब से वो मेरे अपने ग़ैरों में बट गए
उम्मीद के तो जैसे बादल ही छट गए
ग़म यूँ तो बाँटने से अब तक बढ़े ही थे
पर संग तेरे बाँटे तो ये भी घट गए
मुश्किल था काम वैसे यूँ भूलना उसे
इस काम से मगर हम कब के निपट गए
इमदाद में तिरी तो हाजिर बहुत थे ना
तो क्या हुआ अगर हम पीछे भी हट गए
कितने अजीब थे वो अपने तअल्लुक़ात
ख़ुद फैलते गए फिर ख़ुद ही सिमट गए
आए तो थे बहुत से यूँ रास्ते में साथ
मंज़िल थी दूर तो फिर सब ही पलट गए
यूँ उस ने मुस्कुरा कर जब अलविदा कहा
उस से बग़ैर सोचे हम तो लिपट गए
दिन रात माँगते थे जिस को ख़ुदा से हम
उस के बग़ैर ही फिर दिन रात कट गए
थे मुद्दतों से भूके वो जानवर सभी
सो ज़हर भी परोसा तो सब झपट गए
रख कर यक़ीं ख़ुदा पर कुछ यूँ हुआ कि हम
पीछे नहीं हटे जो इक बार डट गए
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