समझ आया मोहब्बत में उदासी है
तुम्हारी क्यों इबादत में उदासी है
हमारे ही क़बीले से ये निकली है
हमारी ही रिवायत में उदासी है
तुझे अच्छा नहीं लगता ये माना चल
तेरी फिर क्यों शिकायत में उदासी है
अलग खाते अलग जीते अलग हो अब
अभी फिर क्यों तबीअत में उदासी है
नज़र उसकी में रहना भी है डरना भी
तो क्या उसकी इजाज़त में उदासी है
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