मोहब्बत के सिवा ग़म और भी हैं इस ज़माने में
ये सब कुछ छोड़ कर मसरूफ़ हूँ पैसा कमाने में
हमें मालूम है सब कुछ यहाँ पैसा ही होता है
बड़ा ख़र्चा है आता अब मु'आलिज को दिखाने में
अमीरों से मुझे नफ़रत नहीं बस ये शिकायत है
ये रोटी फेंक कर ख़ुश हैं ग़रीबों को सताने में
मेरी आँखों के आँसू इस तरह सूखे हुए हैं अब
बड़ा ग़ुस्सा है आता अब ज़बरदस्ती बहाने में
मुझे अब याद आते हैं वो बचपन के पुराने दिन
मुझे हर चीज़ मिल जाती थी बस रो कर दिखाने में
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