आपकी बातों को बेशक मानकर अच्छा लगा - Shubhangi Bharti

आपकी बातों को बेशक मानकर अच्छा लगा
दोस्त प्रेमी बन सकेंगे जानकर अच्छा लगा

सालों से उस बंद कमरे की घुटन में क़ैद था
ख़ुद को तेरे ग़म से यूँ अनजान कर अच्छा लगा

एक ही तस्वीर को घंटों निहारा करता हूँ
आईने में ख़ुद को भी पहचानकर अच्छा लगा

लग गई ये उम्र सारी एक ही के प्यार में
प्यार में वो एक ज़िद भी ठानकर अच्छा लगा

कब से ही इस दिल में मेरे जिस घड़ी का ख़ौफ़ था
दो ही पल का उसको अब मेहमान कर अच्छा लगा

'भारती' वो शख़्स जो घर कर गया था मन में यूॅं
एक जो वो था ख़ुदा इंसान कर अच्छा लगा

- Shubhangi Bharti
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