दस्तूर-ए-इश्क़ में गर हम पे दिल तेरा भी निसार होता
तो नींद की इनायत होती और आँखों में क़रार होता
ये तेरी दिल-फ़रोज़ बातें ये तेरे उल्फ़त के वादे
हसीन होती ये ज़िंदगी अगर तुझ पे ऐतबार होता
ये इशरत-ए-दीद शराब सी है पर दीद तेरी उधार सी है
कि फेर लेते तुझ से नज़रें गर इन पे इख़्तियार होता
तेरी चाहत की चाहत में हम सब कुछ भूले बैठे हैं
ऐ काश तुझ से न प्यार होता न प्यार का इंतिज़ार होता
ये सोहबत की रुसवाई है गर क़ुर्बत में तन्हाई है
जो दरमियाँ न दीवार होता हाल-ए-दिल आश्कार होता
यूँ जीना तो दुश्वार है ये पर क्या कीजे कि प्यार है ये
हाँ गर तू ग़म-गुसार होता तो ये दिल ख़ुश-गवार होता
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