दुश्मनों से मुझे गिला ही नहीं
प्यार तूने भी तो किया ही नहीं
मैंने सीने पे जिसका नाम लिखा
यार बस वो मुझे मिला ही नहीं
कितना चीख़ा मैं तेरी यादों में
मेरे लब पे कोई सदा ही नहीं
नब्ज़ देखो ना अब तबीब मेरी
इश्क़ के रोग की दवा ही नहीं
तुमको ये वहम हो गया शायद
मक़्ता शाकिर ने तो कहा ही नहीं
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