Yazdani Jalandhari

Yazdani Jalandhari

@yazdani-jalandhari

Yazdani Jalandhari shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Yazdani Jalandhari's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

11

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
निगाह-ए-नाज़ का हासिल है ए'तिबार मुझे
हवा-ए-शौक़ ज़रा और भी निखार मुझे

कभी ज़बाँ न खुली अर्ज़-ए-मुद्दआ के लिए
किया है पास-ए-अदब ने भी शर्मसार मुझे

पुराने ज़ख़्म नए दाग़ साथ साथ रहे
मिली तो कैसी मिली दा'वत-ए-बहार मुझे

फिर अहल-ए-होश के नर्ग़े में आ गया हूँ मैं
ख़ुदा के वास्ते इक बार फिर पुकार मुझे

बिखर रही है मोहब्बत की रौशनी हर सू
उड़ा रहा है कोई सूरत-ए-ग़ुबार मुझे

न जाने कौन सा है शो'बदा तआ'क़ुब में
कि आज उस ने कहा है वफ़ा शिआ'र मुझे

जो आप आएँ तो ये फ़ैसला भी हो जाए
दिखाई देता है मौसम तो ख़ुश-गवार मुझे

हज़ार बार सुकून-ए-हयात की हद में
हज़ार बार किया दिल ने बे-क़रार मुझे

मिरे शबाब मिरी ज़िंदगी मिरे माज़ी
ज़बान-ए-हाल से इक बार फिर पुकार मुझे

वो बात जिस पे मदार-ए-वफ़ा है 'यज़्दानी'
वो बात कहना पड़ेगी हुज़ूर-ए-यार मुझे
Read Full
Yazdani Jalandhari
ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं
मैं वो इंसाँ हूँ जिसे नाम-ओ-नसब याद नहीं

मैं ख़यालों के परी-ख़ानों में लहराया हूँ
मुझ को बेचारगी-ए-महफ़िल-ए-शब याद नहीं

ख़्वाहिशें रस्ता दिखा देती हैं वर्ना यारो
दिल वो ज़र्रा है जिसे शहर-ए-तलब याद नहीं

गर्द सी बाक़ी है अब ज़ेहन के आईने पर
कैसे उजड़ा है मिरा शहर-ए-तरब याद नहीं

तब्सिरा आप के अंदाज़-ए-करम पर क्या हो
मुझ को ख़ुद अपनी तबाही का सबब याद नहीं

ख़ुद फ़रामोशी ने तकलीफ़ की शिद्दत कम की
मुझ को कब याद थे ये ज़ुल्म जो अब याद नहीं

मुझ से पूछा जो गया जुर्म मिरा महशर में
दावर-ए-हश्र से कह दूँगा कि अब याद नहीं

इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'
कोई और उन को मना लेने का ढब याद नहीं
Read Full
Yazdani Jalandhari
सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम
तारीकियों में फिर भी उतारे गए हैं हम

रास आ सकी न हम को हवा तेरे शहर की
यूँ तो क़दम क़दम पे सँवारे गए हैं हम

कुछ क़हक़हों के अब्र-ए-रवाँ ने दिया निखार
कुछ ग़म की धूप से भी निखारे गए हैं हम

साहिल से राब्ता हैं नहीं टूटता कभी
कैसे समुंदरों में उतारे गए हैं हम

टूटा न राह-ए-शौक़ में अफ़्सून-ए-तीरगी
ले कर जिलौ में चाँद सितारे गए हैं हम

जाना मुहाल था तिरी महफ़िल को छोड़ कर
पा कर तिरी नज़र के इशारे गए हैं हम

इस तीरा ख़ाक-दाँ में कोई पूछता नहीं
कहने को आसमाँ से उतारे गए हैं हम

सौ बार बार-ए-ग़म ने परेशाँ किया हमें
सौ बार मिस्ल-ए-ज़ुल्फ़ सँवारे गए हैं हम

इस सिलसिले में मौत तो बदनाम है यूँही
इस ज़िंदगी के हाथों ही मारे गए हैं हम

गिर्दाब-ए-ग़म में डूब के उभरे हैं बारहा
किस ने कहा किनारे किनारे गए हैं हम

'यज़्दानी'-ए-हजीं हमें कुछ भी ख़बर नहीं
उस आस्ताँ पे किस के सहारे गए हैं हम
Read Full
Yazdani Jalandhari
जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं
बड़े दिलचस्प अफ़्साने बने हैं

हक़ीक़त कुछ तो होती है यक़ीनन
कहीं झूटे भी अफ़्साने बने हैं

बहुत नाज़ाँ थे जो फ़र्ज़ानगी पर
उन्हें देखा तो दीवाने बने हैं

कि अंदाज़-ए-नज़र की आज़री से
दिलों में कितने बुत-ख़ाने बने हैं

जो शोअ'ला शम्अ' के दिल में है रौशन
उसी शोले से परवाने बने हैं

ये किस साक़ी का फ़ैज़ान-ए-नज़र है
चमन में फूल पैमाने बने हैं

क़यामत था मिरा महफ़िल से उठना
न जाने कितने अफ़्साने बने हैं

मिरी दीवानगी पर हँसने वाले
ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश फ़रज़ाने बने हैं

जली हैं ज़ेहन में यादों की शमएँ
तसव्वुर में सनम-ख़ाने बने हैं

ब-नाम-ए-ग़म ब-उनवान-ए-मोहब्बत
जुनूँ-अफ़रोज़ अफ़्साने बने हैं

ज़माने से हो 'यज़्दानी' गिला क्या
कि जो अपने थे बेगाने बने हैं
Read Full
Yazdani Jalandhari
तन्हाई में अक्सर यही महसूस हुआ है
जिस तरह कोई मेरी तरफ़ देख रहा है

ढूँडा कोई साथी जो कभी दश्त-ए-वफ़ा में
इक अपना ही साया मुझे हर बार मिला है

सीने में है महफ़ूज़ मता-ए-ग़म-ए-दौराँ
दीबाचा-ए-अय्याम मिरे दिल पे लिखा है

आहट सी शब-ए-ग़म जो तुझे दी है सुनाई
ऐ दिल वो तिरे अपने धड़कने की सदा है

हो ख़ैर चराग़ान-ए-सर-ए-राहगुज़र की
सुनते हैं बहुत तेज़ ज़माने की हवा है

यक-रंग कहाँ होती है इंसान की फ़ितरत
हर फूल की ख़ुशबू है अलग रंग जुदा है

मग़रूर न हो हुस्न पे ए शम-ए-फ़रोज़ाँ
परवाने की आँखों में कोई और ज़िया है

नींद आती है यज़्दानी-ए-मुज़्तर को सकूँ से
ये मौत है या दोस्त के दामन की हवा है
Read Full
Yazdani Jalandhari
जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह
दिल की ता'मीर कि कल तक थी शिवालों की तरह

अक़्ल-ए-वारफ़्ता के बे-नूर बयाबानों में
हम भटकते रहे आवारा ख़यालों की तरह

हम कि इस बज़्म में हैं साया-ए-ग़म की सूरत
कौन देखेगा हमें ज़ोहरा-जमालों की तरह

हाथ बढ़ता नहीं रिंदों का हमारी जानिब
हम ख़राबात में हैं ख़ाली प्यालों की तरह

जब कोई ख़ार-ए-सितम दिल में उतर आता है
फूट कर रोता है दिल पाँव के छालों की तरह

जब भी पढ़ता हूँ किताब-ए-ग़म-ए-हस्ती ऐ दिल
तज़्किरा उन का भी मिलता है हवालों की तरह

सोज़-ओ-एहसास की तस्वीर है क़ल्ब-ए-शाएर
नग़्मे तख़्लीक़ हुआ करते हैं नालों की तरह

अरसा-ए-दहर में की हम ने बसर 'यज़्दानी'
ज़ुल्मत-ए-शब की तरह दिन के उजालों की तरह
Read Full
Yazdani Jalandhari
लबों तक आया ज़बाँ से मगर कहा न गया
फ़साना दर्द का अल-मुख़्तसर कहा न गया

हरीम-ए-नाज़ में क्या बात थी जो राज़ रही
वो हर्फ़ क्या था जो बार-ए-दिगर कहा न गया

ये हादसा भी अजब है कि तेरे ग़म के सिवा
किसी भी ग़म को ग़म-ए-मो'तबर कहा न गया

नफ़स नफ़स में था एहसास-ए-ख़ाना-वीरानी
ख़राबा-ए-ग़म-ए-हस्ती को घर कहा न गया

तलाश करता हूँ ईमा-ए-इल्तिफ़ात अभी
वो क्या नज़र थी कि जिस को नज़र कहा न गया

जुनूँ ने फ़िक्र-ओ-नज़र को वो रिफ़अतें बख़्शीं
ख़िरद को हम से कभी दीदा-वर कहा न गया

न कोई शोर न ग़ौग़ा न हाव-हू न ख़रोश
ख़िज़ाँ को मौसम-ए-देरीना-गर कहा न गया

दिल इज़्तिराब-ए-गुज़ारिश का महशरिसताँ था
किसी के सामने कुछ भी मगर कहा न गया
Read Full
Yazdani Jalandhari