मोहब्बत में जो इतनी ख़ामियाँ हैं,
जो कुछ है तेरे मेरे दरमियाँ हैं
मुझे ऐसी भी क्या मजबूरियाँ हैं,
कि मेरे दिल में दो दो लड़कियाँ हैं
कभी मिलता नहीं मुझसे नया शख़्स,
मिरे हिस्से में बासी रोटियाँ हैं
नहीं दिखता किसी को प्यार मेरा,
सभी के चश्म पे क्या पट्टियाँ हैं
जहाँ तुमने सँवारे बाल अपने,
वहीं पर लड़खड़ाती कश्तियाँ हैं
सितम क्या है कि चश्म-ए-तर है क्यूँ ये,
शजर है सूखा, सूखी पत्तियाँ हैं
कभी जो सादगी थी इतनी, अब तो
उसी दिल में सुलगती भट्ठियाँ हैं
कभी देखा नहीं मैं इनका चहरा,
किसी जानिब तो अच्छी लड़कियाँ हैं
सुना है शादी भी कर ली है तुमने,
बताओ अब, कि कितनी बेटियाँ हैं
कभी हुस्न-ए-नज़र से देख उनको,
कि तुझसे अच्छी तेरी बेटियाँ हैं
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