हम तेरे इस शहर में आए मगर

  - Amaan Ali

हम तेरे इस शहर में आए मगर
तुझ से मिलते मिलता तू हमसे अगर

तुमने देखा है कभी जाकर उधर
हुस्न से लबरेज़ है उसका नगर

तुम भला कब मेरी मंज़िल हो गए
कब मैं भटका ज़िन्दगी की ये डगर

शौक़ के पीछे गुज़र हो ही गई
भर गया है अब गुनाहों का गगर

  - Amaan Ali

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