नज़र की शौखियाँ दिल में तराना छोड़ देती है
वो हर अंतिम बार, मिलने का बहाना छोड़ देती है
मेरा कान्हा जब दुनिया छोड़ने की हद पे होता है
तो राधा भी उसे रस्ता बताना छोड़ देती है
कौन सा तीर था मैं जो सदा सीधा ही जाता
ये राह-ए-ज़िंदगी है आगे जाकर मोड़ देती है
ऐसा कोई मसला नही होता की दिल बहले
हमारी ही घुटन अंदर से हमको तोड़ देती है
यही ज़िद है जमाने की तो लो ये भी किया हमने
मैं उसको छोड़ देता हूँ वो मुझको छोड़ देती है
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