"पहला इश्क" - JAANIB GORAKHPURI

"पहला इश्क"

पता है इश्क कहां हुआ था हमें,
शायद खुद नहीं पता ,
हां एक बार देखा था उसको,
अपनी उंगलियों को कानों के पीछे ले जाते हुए,
उन बालियों की चमक पर,
मन जैसे अटक सा गया था

खिलखिलाती हंसती वो मानो,
वादियों की सर्द हवाएं ,
और फिर मुस्कुराते हुए देखने पर उसका शर्माना,
जैसे कोहरे की गर्म चाय ,
वो पहली मुलाकात गुनगुनी धूप
और उसका पहला स्पर्श,
हां वो कैसे भूल सकता हूं मैं

मचलती आँखें जो गुस्से का इशारा करती थी,
हाँ बस वही कहीं पर अटक गया था मैं

शायद यह सब कुछ खास ना लग रहा हो,
इसलिए नहीं पता इश्क कहां हुआ था हमें

- JAANIB GORAKHPURI
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