करूँ तारीफ़ जितनी मैं तेरे फ़न पर
महकती उतनी ख़ुशबू मेरे ही तन पर
बड़ा बेज़ार दुख है ये मोहब्बत भी
हमारा दिल भी आया तो सुहागन पर
तू इतना भी सजा मत कर कि तुझको छोड़
नज़र जा मेरी ठहरे तेरे कंगन पर
मोहब्बत की भला अब उम्र ही क्या है
कि तोहफ़े लौटा दो थोड़ी सी अनबन पर
तेरा ये बोलना बस मन नहीं है आज
ज़रा तो सोच क्या गुज़री मेरे मन पर
गवाही दे रहा था मैं मुख़ालिफ़ में
मगर पूछा पुलिस ने हाथ रख गन पर
तुम्हें तो मैं समझ बैठा था काफ़ी कुछ
मगर तुम भी मरे तो सिर्फ़ इक धन पर
तू भी तो मुस्कुरा कर ग़म छुपाती है
गई है तू भी मेरे दिल के आँगन पर
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