ये बेदारी मेरी आँखों की बीनाई न खा जाए
सज़ा से बच गया पर मुझको रुस्वाई न खा जाए
ये मीठा झूठ तन्हाई मेरे मिसरे बनाती है
मुझे तो डर ये खाता है कि तन्हाई न खा जाए
सहा है मैंने हिजरत हिज्र दोनो जाँ न जाने क्यूँ
मगर इक टीस ये है तेरी हरजाई न खा जाए
है मेरे पास बेहतर मुझ से भी कुछ मशवरे वाले
मगर हूँ ऐंठ का मारा सो ख़ुद-राई न खा जाए
मैं हर सच को समझ कर झूठ हूँ अपने गुमाँ में पर
ये भी डर है कि इक दिन मुझको सच्चाई न खा जाए
तेरी शादी विदाई का सितम तो सह लूँ इसका क्या
पड़ोसी है तू शादी पहले शहनाई न खा जाए
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