कोई शिकवा हो आख़िर क्या किसी से
मिला है क्या मुझे इस ज़िन्दगी से
जिसे तुम प्यार करते थे बताओ
तुम्हारा भर गया क्या मन उसी से
भरोसा अब नहीं मुझको किसी पर
लगाऊँ दिल मैं कैसे अजनबी से
सताया इस क़दर अपनों ने हमको
किनारा कर लिया हमने सभी से
ये सब क़ुदरत का ही ढ़ाया सितम है
कोई शिकवा नहीं है आदमी से
अता की जिसने ख़ुशियाँ इंतिहाई
मिला है दर्द भी मुझको उसी से
मुसलमानों फ़क़त तुम हीं नहीं बस
मोहब्बत करता हूँ मैं भी नबी से
सिया फिर फँस चुकी है दानवों में
मिलूँगा तो कहूँगा राम जी से
Read Full