ऐलान ये हुआ है अभी हुक्मरान से
बोलोगे गर ख़िलाफ़ तो जाओगे जान से
जिसकी ज़बान पे मुझे बेहद यक़ीन था
आख़िर मुकर गया वही अपनी ज़बान से
उसको तो अपनी जान की परवाह ही नहीं
मतलब नहीं है जिसको भी दुनिया जहान से
जिसको के रोकने के लिए आए हो यहाँ
वो तीर तो निकल गया मेरी कमान से
अच्छा नहीं है इतना तकब्बुर भी मेरे यार
पाला नहीं पड़ा है सही नौजवान से
सोचा था साथ देगा मेरा मंज़िलों तलक
आख़िर के वो भी सो गया थक कर थकान से
जो देखता है दूर से मुफ़लिस की बे-घरी
वो भी निकाला जाएगा अपने मकान से
क़ाइम नहीं है ख़ुद ही नज़ाम-ए-जहान यूँ
कोई चला रहा है इसे आसमान से
अमृत या ज़हर लोगे बताओ 'कुमार' तुम
सब लोग दोनों लेते हैं मेरी दुकान से
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