ख़ुद को मैं ऐसा बनाना चाहता हूँ
मुफ़लिसों के काम आना चाहता हूँ
रस्म चाहे जो चला लो दोस्तों पर
मैं तो अपना घर चलाना चाहता हूँ
दुनिया मुझको आज़माकर थक गई है
अब मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
जिसकी छाँओं में पनाहें ले मुसाफ़िर
पेड़ इक ऐसा लगाना चाहता हूँ
मुझको फ़िक्र-ए-फ़र्दा है जाने जिगर कुछ
इसलिए मैं भी कमाना चाहता हूँ
नफ़रतों का दौर है लेकिन महोदय
प्रेम का मैं गीत गाना चाहता हूँ
आपने तो दिल दुखाया है मेरा पर
आपको हरदम हँसाना चाहता हूँ
जिस गली में प्यार ही बस प्यार हो अब
उस गली में यार जाना चाहता हूँ
नर्म होंटों पर लबों को डालकर बस
आग दिल में मैं लगाना चाहता हूँ
शाइरों की महफ़िलों में बैठकर मैं
अपना भी जौहर दिखाना चाहता हूँ
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