ज़माना कह रहा पागल भला तुम क्यूँ नहीं कहते
कि जब जाना है तो सीधे बला तुम क्यूँ नहीं कहते
वो जो लिखते हैं क्या करते हैं हर पल तुमने ये बोला
कभी शब्दों की माला को कला तुम क्यूँ नहीं कहते
तुम उसको देखते हो और कहते हो भिखारी है
बड़ी मुश्किल में शायद ये पला तुम क्यूँ नहीं कहते
मैं अक्सर देखती हूँ मुड के मेरे पीछे लोगों को
बताओ फिर भी इस दिल को ख़ला तुम क्यूँ नहीं कहते
यूँ क्या बे-मोल अब भी तन के आगे मन यहाँ सुंदर
कहो 'नैना' को साँचे में ढला तुम क्यूँ नहीं कहते
As you were reading Shayari by Nainsee Gupta 'Nayantara'
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