सहराओं से उत्कट रवानी की तरफ़

  - Milan Gautam

सहराओं से उत्कट रवानी की तरफ़
मैं चल दिया हूँ आज पानी की तरफ़

हाथों से बजरी सा फिसलता जा रहा
है बढ़ रहा बचपन जवानी की तरफ़

ये उम्र ही तो है मोहब्बत करने की
मैं जा रहा हूँ इक दिवानी की तरफ़

दौलत की जिस-जिस को भी ताक़त मिल गई
वो बढ़ रहा है हुक्मरानी की तरफ़

हम इम्तिहाँ भी ले चुके हैं उसका और
अब बढ़ना होगा जावेदानी की तरफ़

अब मुल्क में ग़ुर्बत भी छाने वाली है
है ही नहीं कोई किसानी की तरफ़

इंसानियत का मरना तो ज़ाहिर ही है
सब जा रहे हैं बद-गुमानी की तरफ़

जो सुन के दिल महसूस कर पाए चलो
इक ऐसी ही अफ़ज़ल कहानी की तरफ़

  - Milan Gautam

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