तिरे कुछ पल की सोहबत का न जाएगा असर जानाँ
रहें ता-उम्र महफ़िल में या तन्हा उम्र भर जानाँ
सिखाता कौन है तुम को अदाई से दग़ा-बाज़ी
किधर से लाती हो मासूम बनने का हुनर जानाँ
मसर्रत के समाँ से जा रहा हूँ दूर सदमों में
मिलूँगा मैं वहीं तुम को मिलेगा ग़म जिधर जानाँ
जमाअत ज़ात मज़हब आल सब होंगे ख़िलाफ़ अपने
सुऊबत से भरा है ये मोहब्बत का सफ़र जानाँ
हमारे रास्ते और मंज़िलें सब हैं जुदा लेकिन
न जाने दिल को क्यूँ जाना है तेरी रहगुज़र जानाँ
नज़ारे और क्या देखूँ नज़र हटती नहीं तुम से
तुम्हारी जुस्तुजू में रहती है मेरी नज़र जानाँ
जो मेरे साथ रोज़-ओ-शब हुआ क्या-क्या नहीं मालूम
तुम्हें इल्म-ए-ज़माना है नहीं मेरी ख़बर जानाँ
मोहब्बत में अना को मारना है अव्वलन मसरफ़
हम अपने प्यार के आगे झुका सकते हैं सर जानाँ
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