ये सोचना क्या तेरे बिना ज़ीस्त भी होगी
होगी तो मुनव्वर या घनी तीरगी होगी
मैं देखता हूँ जब तुम्हें लगता है जहाँ से
इस बार मोहब्बत के लिए सरकशी होगी
हर-रोज़ मिरे ख़्वाबों में आती है जो लड़की
क्या वो भी तसव्वुर में मुझे देखती होगी
तख़्लीक़ बिना कश्फ़ के हो पाएगी कैसे
कैसे तुम्हें बिन याद किए शाइरी होगी
हम फिर से नहीं दिल लगा पाएँगे दुबारा
ये पहली मोहब्बत है यही आख़िरी होगी
दुनिया के बचे रहने का बस है यही इम्कान
जब दुनिया में हर एक जगह आशिक़ी होगी
हर रोज़ नए दीन-ओ-ख़ुदा होते हैं ईजाद
हम से तो किसी की भी नहीं बंदगी होगी
दुनिया से भले आरज़ी है मेरा तअल्लुक़
तुम से जो वफ़ा होगी मिलन दाइमी होगी
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