कभी बारिश सरीखी आ ज़मीनें तर-ब-तर कर दे
मैं तुख़्म-ए-इश्क़ हूँ छू कर मुझे कामिल शजर कर दे
मोहब्बत आतिश-ए-नमरूद में हर रोज़ जलती है
मिरे महबूब इस आतिश को मुझ पर बे-असर कर दे
मिरे बारे में क्या-क्या सोचती है वो चले मालूम
बस आईना सिकंदर का मुझे रब नज़्र-भर कर दे
अगर दुनिया है जन्नत और मोहब्बत है समर मम्नूअ
मिरे अल्लाह मुझको ख़ुल्द से जन्नत-बदर कर दे
हमारी दास्तान-ए-इश्क़ है बस मुनहसिर तुझ पर
तिरी मर्ज़ी तू अफ़साना बना या मुख़्तसर कर दे
मोहब्बत से इलाही का ब-ज़ाहिर रब्त होता है
ये वो आतिश दिल-ए-वादी-ए-ऐमन में सहर कर दे
दोबारा हश्र आएगा ख़ुदा का हुक्म आया है
मोहब्बत करने वालों को जहाज़-ए-नूह पर कर दे
अगर मिल जाए जाम-ए-जम मुझे मैं उसमें भी केवल
तिरा चेहरा निहारूँगा ये चाहे चश्म-ए-तर कर दे
बड़ी कुल्फ़त हुई है जानकर फ़रहाद का अंजाम
मिरे क़ासिद मिरी शीरीं को जा कर बा-ख़बर कर दे
मैं अपनी हीर की तस्वीर के सिक्के चलाऊँगा
'मिलन' आकर मिरे सर पर हुमा साया अगर कर दे
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