इश्क़ थोड़ा या ज़्यादा नहीं होता है
या तो ये होता है या नहीं होता है
अब की नस्लों से पूरा नहीं होता है
इश्क़ मुझसे अधूरा नहीं होता है
क्यों रखें दिल भी गर इश्क़ करना न हो
घर में अंधों के शीशा नहीं होता है
हादसा ही तो है इश्क़ का होना भी
हादसा जिसमें बचना नहीं होता है
हाथ जलता हुआ छोड़ना है सही
ख़ुद की महफ़ूज़ी धोखा नहीं होता है
शादमाँ में छिपा रहता है जुल कभी
हर दिल-ए-शाद सादा नहीं होता है
उसकी जब से है मंदिर में शादी हुई
अब वहाँ मुझसे सजदा नहीं होता है
उसके अश्कों पे मत जा रे मासूम दिल
रोता हर शख़्स सच्चा नहीं होता है
पूछता है जो बस रौशनी में तुझे
दोस्त वो अपना अपना नहीं होता है
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