अगर हो दोस्त तो ये काम मेरा क्यूँ नहीं करते
किसी ख़ंजर से मेरा चाक सीना क्यूँ नहीं करते
सर-ए-बाज़ार करते हैं नुमाइश अपने ज़ख़्मों की
कभी उसने कहा था दिल को हल्का क्यूँ नहीं करते
भटकते फिर रहे हो आसमानी चक्करों में क्यूँ
बने जन्नत ज़मीं ही ये तमन्ना क्यूँ नहीं करते
तग़ाफ़ुल आपकी अच्छी नहीं है ख़ुश नहीं हूँ मैं
भरी महफ़िल में मुझको आप रुस्वा क्यूँ नहीं करते
सितारे चाँद तो होते नहीं हैं सब की क़िस्मत में
मियाँ तुम जुगनुओं से ही गुज़ारा क्यूँ नहीं करते
बिलखते फिर रहे हो हिज्र जैसी छोटी बातों पर
अमाँ छोड़ो ज़रा दिल को कुशादा क्यूँ नहीं करते
चलो माना कि तुमको इश्क़ ख़ुद से भी नहीं साहिल
दिखावा कर तो सकते हो दिखावा क्यूँ नहीं करते
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