पहले दिल को आह मिली
फिर ग़ज़लों को वाह मिली
जिसकी ख़ातिर मैं तरसा
गैरों को वो बाह मिली
मैंने था चाहा जिसको
उसको सबकी चाह मिली
हाल मेरा जिसने पूछा
उनको इक अफ़वाह मिली
अरसों तक ख़ुद को बेचा
तब जाकर तनख़्वाह मिली
बरसों तक भटका पहले
फिर जाकर इक राह मिली
'वीर' तुझे है हैरत क्यूँ ?
किसको आख़िर चाह मिली ?
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