कहीं भी ग़लती थी उसकी नहीं थी - Sachit Agrawal

कहीं भी ग़लती थी उसकी नहीं थी
अभी तक वो जवाँ भी थी नहीं थी

सितारे चाँद धरती कुछ न थे ख़ास
जहाँ में जब ग़ज़ल आई नहीं थी

कोई अपना नहीं दुनिया में मेरा
समझ आया ये जब माई नहीं थी

पिता बेटे की फ़ितरत देख सोचे
ये बेटा बोझ है बेटी नहीं थी

वो जिस क्रीड़ा में ख़ुद को हार बैठी
वो ख़ुद उस खेल को खेली नहीं थी

पुकारा कृष्ण को कृष्णा ने बस फिर
बदन से हटनी वो साड़ी नहीं थी

मोहब्बत इश्क़ उल्फ़त सब कहाँ थे
जहाँ में जब हवस आई नहीं थी

तिरी वहशत बता देगी सभी को
कभी तू ने मोहब्बत की नहीं थी

उसे जाना था सो वो जा चुकी है
मिरी आवाज़ पर रुकनी नहीं थी

- Sachit Agrawal
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