समय की चिमनियों से कहकशाँ सा निकला है - Surendra Bhatia "Salil"

समय की चिमनियों से कहकशाँ सा निकला है
जलन सीने में करता कुछ धुआँ सा निकला है

वो कल इक काग़ज़ी कश्ती का तन्हा माँझी था
सुना है आज उसका कारवाँ सा निकला है

अना को रात दिन हथियाए बैठा था मेरे
अभी देखा तो उसका इक मकाँ सा निकला है

मुझे जिस लम्हा उसकी याद आती है सलिल
लगे आँखों से जैसे कुछ रवाँ सा निकला है

- Surendra Bhatia "Salil"
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