उदासी जान ले लेगी
तेरी पहचान ले लेगी
नई नस्लों की बेबाक़ी
हमारी आन ले लेगी
तू घर तो भर न पाएगी
मगर दालान ले लेगी
पड़ेगी रौशनी महँगी
ये रौशनदान ले लेगी
बिना जज़्बे वफ़ादारी
तेरे अरमान ले लेगी
ये तामीर-ए-मकाँ पूरा
ही क़ब्रिस्तान ले लेगी
नए जलवे दिखाती है
तो क्या ईमान ले लेगी
सियासत एक दीमक है
जो हिंदुस्तान ले लेगी
ग़ज़ल पर्दे में रहकर भी
कई फ़रमान ले लेगी
'सलिल' ये साफ़-गोई ही
तेरे अरकान ले लेगी
As you were reading Shayari by Surendra Bhatia "Salil"
our suggestion based on Surendra Bhatia "Salil"
As you were reading undefined Shayari