यूँ क़यामत के सब आसार नज़र आते हैं
वो मोहब्बत के तरफ़दार नज़र आते हैं
यार आशिक़ यहाँ दो-चार नज़र आते हैं
और सब हमको अदाकार नज़र आते हैं
क़ैस से लगता है रिश्ता है तेरी बस्ती का
सब यहाँ इश्क़ के बीमार नज़र आते हैं
कल तलक जान बुलाते थे जो ख़ुश होके हमें
आज हम उनको ही अग़्यार नज़र आते हैं
बे वफ़ा सैकड़ों मिल जाते हैं आते जाते
अब कम ही लोग वफ़ादार नज़र आते हैं
आपने लगता है दर्पण नहीं देखा है कभी
आपको हम यूँ ख़ता कार नज़र आते हैं
हम सफ़र तुम मेरी जिस दिन से बनी जाने वफ़ा
तब से सब रास्ते हमवार नज़र आते हैं
ऐसा लगता है तेरी बस्ती में आ पहुँचा हूँ
सब बशर साहिब-ए-किरदार नज़र आते हैं
धूप में ढाँप के रख ग़ाज़ा-ए-रुख़सार सनम
तेरे रूख़सार शरर बार नज़र आते हैं
ज़ख़्म इक फूल से जिस दिन से मिला है मुझको
तब से सब फूल मुझे ख़ार नज़र आते हैं
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