किसी के ख़ून से नक्शा नहीं बनाऊँगा
दरख़्त काट के रस्ता नहीं बनाऊँगा
यहाँ सभी को परिंदों की तरह छूट मिले
किसी भी मुल्क में सीमा नहीं बनाऊँगा
तेरा ये हुस्न तो ऐसे ही माहताब लगे
मैं इसलिए कोई गहना नहीं बनाऊँगा
अगर ज़मीं पे बसाउँगा इक नई दुनिया
मैं तुमसे दूर मोहल्ला नहीं बनाऊँगा
मुझे पसंद नहीं दूसरा कोई भी रूप
कभी भी चेहरे पे चेहरा नहीं बनाऊँगा
तेरे बग़ैर जो हर एक वक़्त गुज़रेगा
उसे कभी कोई मुद्दा नहीं बनाऊँगा
मैं हाथ चूम के आऊँगा हाँ भले लेकिन
कोई भी और इरादा नहीं बनाऊँगा
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