मेरे दिल से उतर रही हो तुम - umar udas

मेरे दिल से उतर रही हो तुम
हद से यानी गुज़र रही हो तुम

कितने वादे थे कितनी क़स्में थीं
उन सभी से मुकर रही हो तुम

दिल से तुमको निकाल फेंका था
तुम ही जानो किधर रही हो तुम

दिल तुम्हारा ग़ुलाम होता था
कितने बरसों उधर रही हो तुम

अब नहीं फ़र्क़ पड़ता कोई भी
तुम हो ज़िंदा के मर रही हो तुम

एक वो भी समय था जान-ए-जाँ
जब के जान-ए-उमर रही हो तुम

- umar udas
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