मेरे दिल से उतर रही हो तुम
हद से यानी गुज़र रही हो तुम
कितने वादे थे कितनी क़स्में थीं
उन सभी से मुकर रही हो तुम
दिल से तुमको निकाल फेंका था
तुम ही जानो किधर रही हो तुम
दिल तुम्हारा ग़ुलाम होता था
कितने बरसों उधर रही हो तुम
अब नहीं फ़र्क़ पड़ता कोई भी
तुम हो ज़िंदा के मर रही हो तुम
एक वो भी समय था जान-ए-जाँ
जब के जान-ए-उमर रही हो तुम
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