कितना बद-बख़्त हो गया मतला

  - YAWAR ALI

कितना बद-बख़्त हो गया मतला
जब भी दो-लख़्त हो गया मतला

दर्द-ए-दिल का इलाज चाहा था 
हाय कमबख़्त हो गया मतला

ज़िक्र-ए-महबूब आ गया इसमें
मेरा खुश-बख़्त हो गया मतला

बद-अमल सुन के तिलमिलाए हैं 
इस क़दर सख़्त हो गया मतला

वो ग़ज़ल बे-ज़बान लगती है
जिसका बद-बख़्त हो गया मतला

सानी मिसरा अलग है ऊला से 
तेरा दो-लख़्त हो गया मतला

  - YAWAR ALI

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