वो जो मिलता है सब से ख़ुशी की तरह
दौर-ए-ज़ुल्मत में है रौशनी की तरह
बँध के देखो तो ज़ंजीर-ए-इख़्लास से
कोई रिश्ता नहीं दोस्ती की तरह
झेलने होंगे तुम को ये मौसम सभी
ज़िंदगी बस नहीं फ़रवरी की तरह
हर किसी से सँभल कर मिला कीजिए
साँप डसता नहीं आदमी की तरह
तुम अदू सा मिलो ये गवारा है पर
मत मिलो मुझ से तुम अजनबी की तरह
नफ़रतों के गुलिस्ताँ उजड़ जाएँगे
मिलिए दुश्मन से भी आदमी की तरह
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