सवाल-ए-दर्द पे हँस दे तो ज़िंदगी क्या है
जो रो पड़े तो कहो ख़ून-ए-दिल गिरा क्या है
गुज़र गया जो ज़माना उसे भुलाएँ क्या
ये ग़म नहीं तो बताओ कि ग़म नया क्या है
हमें सुकूत-ए-मोहब्बत पे हक़ अदा करना
कहो कि हश्र में फ़रियाद की सज़ा क्या है
हयात-ओ-मर्ग का रिश्ता है इक तमाशा-सा
समझ सको तो बताओ कि फ़लसफ़ा क्या है
ख़ुशी से मर न गए हम ये क़र्ज़ बाक़ी है
मगर ये सोचिए साहिब कि ये वफ़ा क्या है
न पूछ हुस्न की तारीफ़ मेरे अफ़साने
वो आइना है मगर आईना-नुमा क्या है
जो दिल के दाग़ थे वो रौशनी में ढल बैठे
बताइए कि चराग़ों का सिलसिला क्या है
वो ख़ामुशी जो मिरी नींद छीन ले हर शब
अगर तुझे न पता हो तो ये सदा क्या है
हर इक नज़र को यहाँ अपना देवता चुनना
मगर ये सोच कि दुनिया में दिल-रुबा क्या है
हज़ार सोज़-ए-दिल-ओ-दाग़-ए-ग़म का दरिया है
फिर इसका नाम जो रक्खा गया वफ़ा क्या है
मुक़द्दरात पे 'देव' इल्तिफ़ात क्या करता
जो हो सका न मुक़द्दर से वो ख़ुदा क्या है
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