दिल ले आया मुझको ये किस हालत में
वो चाहिए मुझे क्यूँ हर एक क़ीमत में
कोई जीत लिया ये दुनिया ही सारी
कोई हार गया है सब कुछ चाहत में
पर्वत टूट गए नदियों की चाह लिए
नदियाँ सूख गई दरिया की हसरत में
पहले होती थी तकलीफ़ बड़ी जिस से
अब आता है लुत्फ़ मुझे उस ख़ल्वत में
आज मिला वो बहुत दिनों के बाद मुझे
देख मुझे क्यूँ था वो इतनी हैरत में
हम हैं लोग बड़े बदक़िस्मत क़िस्मत से
सो मिलता है हमको शोक विरासत में
याद नहीं कोई जब बात नहीं कोई
आँख छलक आई क्यूँ शाम किताबत में
माँगा था जो इश्क़ दुआओं में हम ने
बरसा इश्क़ कहीं वो और इनायत में
भला करो पर इतनी बात समझ लो तुम
होता है नुक़्सान बहुत इस आदत में
ज़िल्लत तोहमत लानत और फ़िराक़त भी
कितनी अज़िय्यत है इस शौक़-ए-मुहब्बत में
यक़ीं दिलाया सबको रोज़-ओ-शब मैंने
इश्क़ नहीं पर मुझको यार हक़ीक़त में
ग़ौर किया होगा जो उसने मुझ पर तो
क्या पाती होगी वो मेरी बाबत में
हिसाब कर ने बहुत हैं ज़िन्दगी तुझसे भी
खोलेंगे हम किताब कभी जो फ़ुर्सत में
मन्ज़िल क़रीब होती है जिनके यक-दम
अक्सर टूट गए वो लोग मसाफ़त में
जान उसे तू नीयत से उसकी हमदम
ऐब बड़े होते हैं अच्छी सूरत में
दुआ मिरी सब ना-मंज़ूर हुई क्यूँ रब
है क्या नक़्स मिरी इस तौर-ए-इबादत में
तूने समझा यार ग़लत अब छोड़ उसे
बात लिखी थी कोई और कहावत में
जिन लफ़्ज़ों के कुछ मानी थे पहले अब
आते हैं वो सारे लफ़्ज़ शिकायत में
होते हैं जो हीरों सबके यार मिरे
मर जाते हैं वो किरदार हिकायत में
मुझपे बहुत इल्ज़ाम लगाए उस ने पर
कर न सका साबित वो जुर्म हक़ीक़त में
साथ तिरा देता है ज़र्फ़ है ये उसका
काम कहाँ आते हैं लोग मुसीबत में
मैंने इश्क़ किसी से किया नहीं तो फिर
कौन आता है याद मुझे ये फ़ुर्क़त में
उसका चेहरा भी अब याद नहीं मुझको
उम्र कटेगी मेरी कैसे वहशत में
जो कल तक नौकर था अब वो राजा है
कितनी ताक़त है तू देख मसाफ़त में
शख़्स बहुत होता है अज़ीज़ मुझको जो
शख़्स नहीं होता वो मेरी क़िस्मत में
इश्क़ किताबी शय है अस्ल नहीं ये सो
तुम हो जाओगे बर्बाद शरारत में
जिन बातों पर ग़ौर किया माना जिनको
मतलब क्या है उनका आज सदाक़त में
शाम हुई थी पेड़ यहीं था एक कहीं
बात जहाँ सब ख़त्म हुई थी उल्फ़त में
इश्क़ किया दिलदार किया भरपूर किया
इश्क़ करे वो बात न थी ये फ़ितरत में
इश्क़ हुआ जिस दिन से यार 'अनुज' हमको
गुज़रे हैं तब से दिन-रात नदामत में
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