जैसा भी सोचता है तू वैसा नहीं हूँ मैं
जैसा तू चाहता है बस ऐसा नहीं हूँ मैं
हर कोई तोड़ने में ही मुझको लगा है सिर्फ़
समझाए इनको कोई कि रिश्ता नहीं हूँ मैं
कब से हूँ मुंतज़िर वो मेरा हाल पूछ लें
और मुस्कुराके मैं कहूँ अच्छा नहीं हूँ मैं
आँधी को चाहिए कि वो मेरा करे अदब
खिड़की के पास रहता हूँ बुझता नहीं हूँ मैं
मेरी कमी नहीं जो मैं रोशन नहीं हुआ
ऐसी हथेलियों पे ही खिलता नहीं हूँ मैं
या तो पिया गया या गिराया गया मुझे
बोतल में जो बचा है वो हिस्सा नहीं हूँ मैं
दरिया को पार मैं करूँ रस्ता निकालकर
नावें मुझे भी चाहिए मूसा नहीं हूँ मैं
तेरे बदन की जुस्तुजू कल थी न आज है
यानी कि तुझसे प्यार ही करता नहीं हूँ मैं
इक बार खो दिया मुझे फिर खो दिया मुझे
ख़ुदको भी बार बार मैं मिलता नहीं हूँ मैं
कितनी दफ़ा हुए हैं ये दुश्मन पे बे-असर
अब तीर दोस्ती के चलाता नहीं हूँ मैं
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