दरिया भी नहीं थे तिरे साहिल भी नहीं थे

  - Hassam Tajub

दरिया भी नहीं थे तिरे साहिल भी नहीं थे
हम कश्ती डुबाने में तो शामिल भी नहीं थे

वो लोग जो सालों से सज़ा काट रहे हैं
वो क़ातिलों की भीड़ में शामिल भी नहीं थे

हम जिनकी मुहब्बत में भुला बैठे हैं ख़ुद को
वो कहते हैं हम प्यार के क़ाबिल भी नहीं थे

जो शख़्स मिरे दिल से निकाले नहीं निकला
उस शख़्स के हम दिल में तो दाख़िल भी नहीं थे

ताबीर की ख़्वाहिश में भटकते रहे लेकिन
रस्ता भी नहीं थे तेरी मंज़िल भी नहीं थे

वो लोग जिन्हें अपना समझते रहे अब तक
वो लोग भरोसे के तो क़ाबिल भी नहीं थे

तुम जिनके बिछड़ जाने पे सदमे में गए हो
'हस्साम' तुम्हें लोग वो हासिल भी नहीं थे

  - Hassam Tajub

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