जो तिरी ख़ातिर बुरे हैं
वो मिरी ख़ातिर भले हैं
हाथ धो के लोग पीछे
हम शरीफ़ों के पड़े हैं
इश्क़ में धोखा मिला है
आज कल हम रो रहे हैं
बात फिर करते नहीं हम
जब किसी से रूठते हैं
दुश्मनी में भी मज़ा है
ये भी करके देखते हैं
हादिसा इक हो गया है
इश्क़ इसको बोलते हैं
जल चुका है बाग़ पूरा
पेड़ फिर भी सब हरे हैं
शाम अब ढलने लगी है
बोतलें अब खोलते हैं
फिर नहीं जैसे मिलेगी
मय सभी यूँ पी रहे हैं
इश्क़ जिन से हो गया है
वो रक़ीबों से घिरे हैं
हम वफ़ा उस से करेंगे
बे-वफ़ा जिस से भले हैं
इश्क़ करने का तरीक़ा
लोग हम से सीखते हैं
शब सुहानी आज की है
खेल आओ खेलते हैं
आज बिछड़े जान तुमसे
साल सत्रह हो गए हैं
इश्क़ तो है जानलेवा
पर सभी कर बैठते हैं
आज भी ख़ुश है अकेला
यार 'सागर' के मज़े हैं
Read Full