जिसको मुहब्बत में ग़म मिला है
वो रात दिन पंखा देखता है
तू हाथ धर दे हो जाएगा कम
जो दर्द मेरे दिल में उठा है
मिल जाए गर तो है चैन वर्ना
है रोग उल्फ़त सबको पता है
राह-ए-वफ़ा में जो भी है निकला
पा जाए मंज़िल मेरी दुआ है
है बे-वफ़ाई फ़ितरत में जिसकी
उसको ही सच्चा आशिक़ मिला है
बूढ़ा जवानी में हो गया हूँ
जुर्म-ए-मुहब्बत की ये सज़ा है
आशिक़ तो पागल होते हैं सारे
मैं भी हूँ आशिक़ मुझको पता है
सब लोग मुझको कहते हैं अच्छा
मेरे लिए ये सच में बुरा है
उसको हुई है शायद मुहब्बत
वो रात भर अब जगने लगा है
करते नहीं हम आपस में बातें
झगड़ा भी अपना बिन बात का है
तुझसे बिछड़ कर जाना है मैंने
तुझको भुलाना मुश्क़िल बड़ा है
हर दर्द सह लूँ हँस के मिरा मैं
मुझमें अभी इतना हौसला है
जो बे-वफ़ाओं को माफ़ कर दे
आशिक़ कहीं क्या ऐसा हुआ है
'सागर' तुम्हारा जल्दी मरेगा
माशूक़ 'सागर' का बेवफ़ा है
Read Full